फोटो फ्रीडम हाउस वेबसाइट से साभार कुछ महीने पहले मैंने वैकल्पिक मीडिया पर एक लेख लिखा था। इसमें मीडिया की मुख्यधारा से अलग गए कुछ पत्रकारों और संस्थानों के प्रयासों को रेखांकित करते हुए इन प्रयासों की समीक्षा करने की कोशिश की थी। हाल ही में NDTV के अधिग्रहण के बाद रविश कुमार के यूट्यूब चैनल पर भारी दर्शकों की भीड़ ने वैकल्पिक मीडिया की ताक़त को रेखांकित किया है। मगर इस बार मैंने कोशिश की है कि जनवादी मीडिया के डिजिटल प्रयोगों की कुछ समीक्षा की जाए जोकि ऐसे लोगों की कमान में है जिनका जन-आंदोलनों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।जनवादी मीडिया आमतौर पर डिजिटल मीडिया के पेशेवर स्वरुप के मुक़ाबले कहीं अधिक मुश्किल में अपना काम कर रहा है। घोर संसाधनों का अभाव के बावजूद जनवादी मीडिया पूरी कोशिश करता है जन-साधारण के पक्ष में कुछ हवा बनाने की। हालाँकि आम तौर पर पाठकों तक पहुंचना जनवादी मीडिया के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है खासतौर पर जब डिजिटल युग में इतनी सारी सामग्री हमारे सब तरफ मौजूद है। जनवादी मीडिया के कई उदाहरण हैं। जैसे बहुजनवादी विमर्श को प्रोत्साहित करती "फॉर...
सम-सामायिक विषयों, पोस्ट डेवलपमेंट (उत्तर विकासवाद) और विकास के वैकल्पिक मार्गों की बात; जंगल के दावेदारों की कहानियां, कुछ कविताएं और कुछ अन्य कहानियाँ, व्यंग्य