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वन बहाली और लोकतंत्र: मेडागास्कर में समुदायों की भूमिका


अफ्रीका फारेस्ट रेस्टोरेशन इनिशिएटिव के फेसबुक पेज से साभार 

पूरी दुनिया में लैंडस्केप रेस्टोरेशन या लैंडस्केप बहाली एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। इसका अर्थ है एक क्षेत्र को अपनी प्राकृतिक स्थिति में वापस लाना। मूलतः पारिस्थितिकी तंत्र को वापस बहाल करना ही लैंडस्केप बहाली है। लैंडस्केप बहाली पूरी तरह से प्रभावी नहीं होगी जब तक कि यह सामाजिक और पारिस्थितिक, दोनों प्रकार के लाभ में योगदान न करे।

हाल ही में घाना के अकरा में ग्लोबल लैंडस्केप्स फोरम में मेडागास्कर की जमीन पर हकों की नीति और लैंडस्केप बहाली कार्यक्रमों में उसके महत्व पर गहन चर्चा हुई।


"बॉन चैलेंज" और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित "इकोसिस्टम रिस्टोरेशन (बहाली) दशक" और "फैमिली फार्मिंग दशक" लैंडस्केप बहाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण वैश्विक कदम हैं। ये कार्यक्रम यू.एन. एजेंसियों, प्रमुख दाता देशों, अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले देशों द्वारा बनाये , संगठित किये गए और वित्त पोषित किये गए हैं। बोन चैलेंज कार्यक्रम के तहत AFR 100 नामक 28 अफ़्रीकी देशों के संगठन ने 11.3 करोड़ हेक्टेयर जमीन को पुनर्वासित करने का बीड़ा उठाया है।


वानिकी पर काम करने वाले अंतराष्ट्रीय विद्वानों में इस बात को लेकर एक राय है कि वन संरक्षण या संवर्धन की योजना बनाने में और उसके क्रियान्वयन के हर चरण में समुदायों की राय और उनका साथ बेहद जरूरी है।


लेकिन अक्सर "कंसल्टेशन" या समुदायों के साथ बातचीत सिर्फ नाम के लिए होती है और भूमि उपयोग प्रथाओं, वित्त पोषण, कार्यक्रम डिजाइन, स्थानीय शासन, प्रोत्साहन, विनियमन, नियोजित परिणामों और लाभ के वितरण के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय बाहरी संस्थाओं द्वारा लिए जाते हैं, जिससे बातचीत का कोई अर्थ नहीं रह जाता।


असल में समुदायों के पास वास्तविक मोलभाव करने की शक्ति नहीं छोड़ी जाती जिसमें ऐसे प्रस्तावों को अस्वीकार करने की क्षमता शामिल है जिसे वे अवास्तविक मानते हैं या अपने हित में नहीं मानते। समुदायों की इस कमजोरी के गंभीर परिणाम हैं।


वन, कृषि, आवास और अन्य उपयोगों के लिए भूमि का उपयोग कैसे और कहां किया जाता है, इस बारे में निर्णय के माध्यम से समुदाय के सदस्य सक्रिय रूप से भू परिदृश्यों को आकार देते हैं। परिदृश्य बहाली के प्रयासों के परिणाम, सकारात्मक या नकारात्मक, काफी हद तक उनके हाथों में हैं। सरकार और गैर सरकारी संगठनों के नियोजक ऐसी नई भूमि उपयोग व्यवस्थाओं को सुझा सकते हैं, जिन्हें पुनर्स्थापना और टिकाऊ उपयोग के लिए अनुकूल माना जाता है। पर अंततः समुदाय ही तय करते हैं कि जिन व्यवस्थाओं को बाहरी नियोजक सुझा रहे हैं, वह व्यवस्थाएं व्यावहारिक और यथार्थवादी हैं या नहीं।


क्योंकि समुदाय संसाधन प्रबंधन की समस्याओं के करीब रहते हैं और उनसे जुड़े हुए काम करते हैं, इस लिए वे ही इस बारे में विकल्प चुनने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में हैं कि भूमि को कैसे प्रबंधित किया जा सकता है और पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक लाभ के लिए उपयोग किया जा सकता है। शोध में पाया गया है कि बाहरी अधिकारियों द्वारा लागू की गयी व्यवस्थाओं में अक्सर तकनीकी विश्वसनीयता की कमी होती है और शायद ही कभी राजनीतिक वैधता होती है (मैकलेन एट अल। 2018)। सकारात्मक परिणामों और लोकतांत्रिक निर्णय लेने में समुदाय की भूमिका के बीच की इस कड़ी को अक्सर वन बहाली कार्यक्रमों में अनदेखा किया जाता है।


सरकारें लैंडस्केप या वन बहाली के लिए समाज को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ कदम उठा सकती है, पर ये कदम काफी साबित होंगे या नहीं, ये तो स्थानीय समुदायों पर ही निर्भर करता है। इसी तरह, सरकारों द्वारा सख्त और बहुत अधिक नियम लादने से या जुर्माने लगाने से समुदाय लैंडस्केप बहाली के उद्देश्यों से विमुख हो सकता है।


औपनिवेशिक काल में समुदाय की निर्णय लेने की क्षमता और दक्षता पर बहुत हमले किये गए। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में सरकारी नियंत्रण की कुछ भूमिका तो जरूर है पर समुदाय के पास सामूहिक रूप से निर्णय लेने की आज़ादी होनी चाहिए की वह किस प्रकार के लैंडस्केप बहाली की प्रक्रिया चलाना चाहता है। उसको प्रबंधन का अधिकार मिलना चाहिए। CIFOR शोध में पाया गया कि भू -धृति सुरक्षा या जमीन पर सामुदायिक अधिकारों की व्यवस्था लैंडस्केप बहाली या वन संरक्षण में सामुदायिक निवेश को प्रेरित करता है। (McLain et al 2018b)


लगभग पूरे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कई क्षेत्रों में भी पारम्परिक तौर पर ज़मीनों पर अधिकार दिए गए थे पर आधुनिक कानून व्यवस्थाओं में पारम्परिक कानूनों की जगह नहीं है।

अफ़्रीकी देश मेडागास्कर, जिसने 2030 तक 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की बहाली का लक्ष्य रखा है , ने तय किया है कि वह अपने संपत्ति के अधिकार कानूनों को आधुनिक बनाएगा और जमीन पर हकों को पट्टों की शक्ल देगा। इस आधुनिकीकरण से कई गरीब मडागास्कर वासियों को नुक्सान उठाना पड़ सकता है क्यूंकि कानून में सामुदायिक प्रबंधन की परम्पराओं की जगह नहीं होती।

मेडागास्कर का अध्ययन

लैंडस्केप बहाली कार्यक्रम में समुदायों के सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के दिशा निर्देशों के बावजूद, मेडागास्कर में सरकारी नौकरशाही को परम्परागत सामुदायिक प्रबंधन प्रणालियाँ नहीं दिखाई दे रही। इस अदृश्यता के कई सबूत हैं।


  1. जैसे, कानून में सामुदायिक संगठनों और सामुदायिक संसाधन अधिकारों की अपर्याप्त मान्यता। मालागासी (मेडागास्कर) नागरिक कानून सैद्धांतिक रूप से वनों का प्रबंधन करने के समुदायों के अधिकार को मान्यता देता है। हालाँकि, कानून समुदायों को उनकी प्रबंधन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आवश्यक शक्तियों का वर्णन या अनुदान नहीं करता है। व्यवहार में, सामुदायिक प्रतिनिधि कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को भूमि उपयोग निर्णयों पर परामर्श देते है, लेकिन सामुदायिक संगठनों को स्थानीय भूमि उपयोग की पहल का प्रबंधन करने और उन्हें लागू करने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता की कमी होती है।
  2. स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ व्यवस्थित रूप से संलग्न होने के लिए परियोजनाओं की विफलता। स्थानीय एनजीओ कभी-कभी यह दावा करते हैं कि वे स्थानीय समुदायों का कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं, या स्थानीय समुदायों की ओर से अधिकार और उनका प्रयोग करते हैं, जबकि समुदायों की राय इससे इतर हो सकती है।
  3. व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों के नियमन या प्रमाणन या व्यक्तिगत पट्टों पर अधिक जोर होना, जो कि कानून में मान्यता प्राप्त हैं, जबकि बहाली के लिए लक्षित अधिकांश जंगलों और परिदृश्यों का उपयोग और सामूहिक रूप से प्रबंधित किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से उपयोग किए जाने वाले क्षेत्रों के कुछ हिस्सों के लिए व्यक्तिगत पट्टों को जारी करने से सामूहिक अधिकारों को और चोट पहुँचती है।
  4. ग्रामीण क्षेत्रों में पट्टे और अन्य प्रकार के वैधानिक अधिकारों को सौंपने के लिए आवश्यक प्रशासनिक अवसंरचना और तकनीकी संसाधन बहुत सीमित हैं।गरीब लोगों को उच्च सर्वेक्षण और पंजीकरण लागत और अपने अधिकारों और आधिकारिक प्रक्रियाओं के सीमित ज्ञान के कारण पट्टे हासिल करने के लिए अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, ऐसे प्रमाण हैं कि प्रारंभिक पट्टे के बाद, सही धारक बिक्री या विरासत के कारण अधिकारों के हस्तांतरण को पंजीकृत नहीं करते हैं, क्योंकि प्रथागत प्रणाली के तहत जमीन के कब्जे की सुरक्षा को पर्याप्त माना जाता है या दोबारा पंजीकृत कराने में बहुत लागत आती है। (आयलाव एट अल, 2019; लॉरी एट अल 2017)
  5. कई बार, प्रवासी व्यक्ति आसानी से आधुनिक पद्धति में पट्टे पा जाते हैं। इससे स्थानीय लोगों के सामुदायिक अधिकारों की भू उपयोग सम्बन्धी निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है।
  6. कई बार स्थानीय लोग पट्टे बनवाते ही नहीं क्यूंकि उन्हें परंपरागत व्यवस्थाओं में ही यकीन होता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक भू धृति कानून सामुदायिक अधिकारों को मान्यता नहीं देते, और सही मायने में जमीन पर जनतंत्र स्थापित नहीं होता, तब तक लैंडस्केप बहाली के प्रयास भी निरर्थक साबित हो सकते हैं। स्थानीय लोग इन प्रयासों में बिना अधिकारों के शामिल नहीं होंगे।

बॉन चैलेंज जैसी वैश्विक लैंडस्केप बहाली की पहल में लोगों की भागीदारी सिर्फ परामर्श लेने नहीं होनी चाहिए।

परमारगत अधिकारों को कई अफ़्रीकी देशों ने मान्यता दी है। इनमें प्रमुख हैं बोट्सवाना, केन्या, लाइबेरिया और दक्षिण सूडान। मेडागास्कर इनमें से एक नहीं है। जब तक मेडागास्कर जैसे देश ऐसे कानून न बनाएं, जिनमें परंपरागत सामुदायिक अधिकारों को मान्यता दी जा रही हो, तब तक पड़े पैमाने पर लैंडस्केप बहाली की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।

यह लेख "अफ्रीका में लैंडस्केप बहाली" विषय पर 29-30 अक्टूबर 2019 को अकरा, घाना में आयोजित ग्लोबल लैंडस्केप्स फोरम के दौरान आयोजित “रिस्टोरिंग फॉरेस्ट्स, रिस्टोरिंग कम्युनिटीज” नामक इंटरेक्टिव सेशन में व्यक्त किये गए विचारों पर आधारित है। सेंटर फॉर इंटरनेशनल फॉरेस्ट्री रिसर्च (CIFOR) के वरिष्ठ सहयोगी स्टीवन लॉरी ने सत्र का आयोजन और संचालन किया। ESSA-FORETS के प्रोफेसर पैट्रिक रैंजटसन, ने इस चर्चा का नेतृत्व किया।

आप इस लेख को अंग्रेजी में नीचे लिखे लिंक से पढ़ सकते हैं।

https://forestsnews.cifor.org/63298/forest-restoration-and-democracy-making-communities-visible-in-madagascar?fnl=en





















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