फोटो इंडियन एक्सप्रेस से |
आखिरी बार अपने जुगनू कब देखा था ? अब ये न कहियेगा कि परवीन शाकिर की ग़ज़ल में देखा था।
"जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए "
बचपन में हमारे घरों में घुस जाते थे जुगनू। रात को बत्ती जाते ही दिखने शुरू हो जाते थे। दिप दिप उनकी रौशनी में कब वो वक़्त कट जाता था, पता ही नहीं चलता था। मेरी उम्र के लोगों ने तो ज़रूर अपने बचपन में जुगनू देखे होंगे। सैकड़ों, हज़ारों एक ही पेड़ पर। तब ज़िन्दगी में जुगनुओं की बड़ी जगह थी। बत्ती तो आती जाती रहती थी। पर जुगनू चमकते रहते थे। फिर कुछ लोग उन्हें देख कर कविता कहानी लिखते थे और कुछ बस उन्हें देखते थे। घंटों। फिर जैसे ही बत्ती आयी तो सारे बच्चे चिल्लाते थे "लाइट आ गयी... और सब घर के अंदर। कभी कभी कोई जुगनू घर के अंदर भी आ जाता था। वो उन कुछ कीड़ों में से थे जिनसे बच्चे डरते नहीं थे। बल्कि खेलते थे।
मुझे नहीं लगता के मेरे बच्चे सहज भाव से जुगनू को कभी छू पाएंगे। उनकी उम्र के सभी बच्चे शायद जुगनुओं के झुण्ड को देखकर डर जाएं क्यूंकि उन्होंने तो ऐसा देखा ही न होगा अपने जीवन में। मेरी चिंता ये है के फिर वो चालाक कैसे बनेंगे। उन्हें तो जुगनू को दिन में परखना होगा न !!
बहुत से पेड़ काट दिए गए, खेत शहरों में बदल दिए गए, कीड़ों को कीटनाशक छिड़क के मार डाला गया, ठीक वैसे ही जैसे भोपाल में यूनियन कार्बाइड ने आदमियों को मार दिया था, कीड़ों की तरह। जुगनू अब हमारी कविता कहानी का विषय नहीं। वह अब शोध का विषय बन गया है। वह दिल में नहीं बसता। उसके लिए हमने दिल में जगह छोड़ी ही नहीं है। कुछ हैरान परेशान दिमाग लगे हैं उसे दोबारा जिलाने में , जिनके खिलाफ हम सब खड़े हैं एक होकर। इनके अलावा जुगनू को एक और चीज़ से बहुत खतरा है। सुन कर चौंक जायेंगे। उन्हें खतरा है हमारी रौशनी से। हमारे रौशनी को लेकर पागलपन ने सैकड़ों जानवरों, पक्षियों और कीड़ों का जीना दूभर कर दिया है। उन्हें शिकार करने में दिक्कत आती है, अपना रास्ता बनाने या ढूंढने में मुश्किल पेश आती है। जुगनुओं का गायब होना सिर्फ एक बहुत बड़ी पारिस्थितिक त्रासदी का एक छोटा सा हिस्सा है, "merely a tip of the iceberg " .. जिसका शिकार पूरा रात्रिचर जगत है।
अँधेरे के डर ने हमें जुगनुओं को सौंदर्य की भावना से जोड़ने की प्रेरणा दी होगी। आज हमारा डर हमारी रौशनी में भी समा गया है। हम लगे हैं दुनिया के हर कोने को रोशन करने में। दिल में अँधेरा कर के ये किसके लिए रौशनी कर रहे हैं हम। जुगनू को खत्म करने के पीछे सबसे बड़ा हाथ इस बात का है कि हमारे दिलों में एक बच्चा था जिसे हमने मार डाला है। अगर वो ज़िंदा होता तो उसे पैसे कमाने से ज्यादा जुगनू बचाने की चिंता होती। खैर!!
नीचे एक बड़ा सुन्दर वीडियो है mongabay वेबसाइट के यूट्यूब चैनल से लिया है। ज़रूर देखिये। अगर जुगनू से जुड़े कोई वाकिये आपके जीवन में घटे हों तो कमेंट जरूर कीजिये।
Male fireflies produce biolumniscence to attract mates. Maybe they've evolved and Aatmanirbhar now.
ReplyDeleteBut there are still some old school veterans at my farm. Or maybe they are a generation that just discovered this feature, courtesy lockdowns.
I've caught my share of fireflies during my share of wonder years. And kept them in glass jam jars for scientific observation. By morning usually the poor creatures weren't thinking about mates..
अपने बच्चों को भी ये शौक़ लगाइये।
DeleteYeh kahnai mere jaise bahut logon ka bachpan ka yadeein hai. Jugunu - hum log Odia me isse juljulia poka yeh sudh odia me Khadyuta kehte hai . khadyuta ra kheda - (pain of fire flies) poem was in our school days odia syllabus written by Kuntala Kumari Sabat. Thanks for an excellent piece .
ReplyDeleteकहीं से खादयुता रा खेदा का हिंदी अनुवाद मिले तो जरूर साझा करना
DeleteSehron ki chakachondh me jugnuo ki roshni feeki hai
ReplyDeleteAajkal ke baacho ne wo kagaz ki kashti bhi kahan dekhi hai..
Yes when we were small we use to catch jugnu in both hands and try to see light thru small gap between fingers.. This usually enjoyed when we had long powercuts and we go to tarrace.
Really your article made memories refreshed and sad too as our kids missing nature gifts.
thanks friend
Deleteसच कहा मित्र, हम तो जुगनू भूल ही गये
ReplyDeleteहम हैं न याद दिलाने को
DeleteComment from Prasanna Khemariya who is unable to write on this platform: Wonderful ....... Kudos to write for writing on this topic ,it was our wonderful world in our childhood .Now we miss this world and other such things like शहतूत, अचार or चार ,तेंदू के फल खाना .🙏👍
ReplyDeleteMy children have missed these natures blessings including wonderful world of Jungnu आज दिल्ली ने बारिश भी हो रही है अल सुबह और इस बेहतरीन एवं उम्दा लेख ने जुगनू के साथ बचपन बारिश की बारिश भी याद दिला दी वो जमकर बारिश में नहाना यदि घर पर हों तब और जब स्कूल में रहे तो आँखों आँखों में इशारे कर शोर मचाते हुए सीधा स्पोर्ट्स रूम भागना और ... वाह... फिर बरसते पानी में जमकर ⚽ फूटबाल खेलना इसका लुत्फ़ मज़ा वही समझ सकता है जिसने बरसते पानी में पानी से भरे मैदान में ⚽⚽ खेली हो साधुवाद 🙏🙏🙏🙏👌👌
एक टिप्पणी की थी, लेकिन पता नहीं कहां गायब हो गई ?!
ReplyDeleteप्रकृति के दिए नायाब जीव की रोशनी तेज विकास के प्रभाव में धूमिल होती जा रही है। प्रकृति ने हमें हर उजियारा दिया, हम आधुनिकता के युग सब भूले जा रहे हैं। ये शानदार लेख लिखने के लिए हार्दिक शुक्रिया। अब मैं अपनी चर्चाओं में जुगनुओं को शामिल करूंगा।
ReplyDelete"Jugnus" definitely remind us of our childhood so many of them and our excitement. Few years back i introduced my son the world of jugnus but yes very difficult to spot them.
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