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महिलाएं और साझे संसाधन


मंडला में किसान महिलाएं 

क्या आप जानते हैं कि आखिर पितृसत्ता पैदा कहाँ से हुयी? महिला-पुरुष की भूमिका का बंटवारा कहाँ से शुरू हुआ? कई नारीवादी अब यह मानते हैं कि पितृसत्ता की जड़ "संपत्ति" या "मिल्कियत" के विचार में है, खास तौर पर निजी संपत्ति के विचार में। प्राकृतिक संसाधनों पर मनुष्य के अधिकार की सोच ने "विरासत" में संसाधनों को पाने के विचार को खाद पानी दिया। "मैं और मेरी संतान इस जमीन के मालिक होंगे, सदा सदा के लिए", इस विचार से ही महिला की प्रजनन करने की प्राकृतिक शक्ति को उसी की आज़ादी के खिलाफ इस्तेमाल करने का विचार पैदा हुआ। मानव जाति के अनुवांशिक विकास के दौरान घटे इस प्रागैतिहासिक अन्याय के कारण महिलाओं का मानव समाज में स्थान बच्चे पैदा करने की भूमिका तक ही सीमित हो गया।

हालाँकि पुरुष जमीन के हर टुकड़े पर अपना राज कायम नहीं कर पाए। हज़ारों लाखों एकड़ जमीन और समुन्दर आज भी निजी मिलकियत नहीं हैं। किसी तरह से समाजों द्वारा साझा किये जाते रहे हैं। पितृसत्ता ने हालाँकि सत्ता के और विकसित रूप पैदा किये जैसे राज्य, धर्म, जाति, कारपोरेशन और यहाँ तक कि जनतंत्र भी (जहाँ महिलाओं को वोट का अधिकार मिले ज्यादा समय नहीं हुआ है), लेकिन कई स्रोत उनके कब्जे से बाहर रहे और उन संसाधनों पर स्थानीय समाजों की साझी मिलकियत और व्यवस्था बनी रहीं। इन्हीं संसाधनों को हम कॉमन्स या साझा संसाधन कहते हैं। यदि आप वृद्धि दर, आय, दौलत आदि शब्दों के बारे में ज्यादा सोचते हैं, तो इसका अर्थ है की आप "मैं" पर केंद्रित हैं। यदि आप जीविका, संकट से उबरने की शक्ति, सुरक्षा आदि शब्दों के बारे में ज्यादा सोचते हैं तो इसका अर्थ है कि आप कॉमन्स या "हम" पर केंद्रित हैं।कॉमन्स या साझा संसाधन निर्धन और वंचितों के लिए जरूरी सुरक्षा कवच हैं। ये साझे संसाधन एकमात्र ऐसे संसाधन हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के लिए महिलाओं को कोई पट्टा नहीं चाहिए अपने नाम पर, कोई कार्ड नहीं चाहिए, कोई परिवार का नाम या पहचान पत्र नहीं चाहिए और न ही कोई फीस पटाने की कोई आवश्यकता है।  ये साझे संसाधन हैं। यह सबके हैं।

मैं महिलाओं को इन साझा संसाधनों को इस्तेमाल करते अधिकतर देखता रहता हूँ, अपने घर में भी और बाहर भी। मैं अपनी पत्नी को और बहुत सी मध्य वर्गीय महिलाओं को इंटरनेट से सीखते हुए देखता हूँ। इंटरनेट ने महिला उद्यमियों की एक पूरी जमात को मौका दिया है जोकि  यूट्यूब में या फेसबुक में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स हैं, या किसी वेबसाइट के जरिये अपना बिज़नेस चलाती हैं। और इंटरनेट क्या है? कॉमन्स है- एक साझा संसाधन।  और चूँकि ग्रामीण विकास कार्यकर्ता रहा हूँ, इसलिए गाँव में कई अकेले रहने वाली महिलाओं के जीवन को देखता हूँ, जो जंगल से लकड़ी लाकर या वन उपज लाकर और उसे बेचकर अपना जीवन चलाती हैं। हमने हाल ही में लघु वनोपज उत्पाद कोओपरेटिव के लिए तेन्दु पत्ता या बीड़ी पत्ता तोड़ने वाली महिलाओं के साथ उनके अलग कार्ड बनाने पर काम किया। वह महिलाएं जो अपने घर पर किसी किस्म की हिंसा से पीड़ित थीं, उन्होंने ख़ास तौर पर कार्ड बनवाया। कई गैर शादीशुदा लड़कियों का भी कार्ड बना ! जरा सोचिए, यदि पिता के जमीन के हिस्से की बात होती तो क्या यह इतनी आसानी से हो जाता कि कुंवारी लड़कियों के नाम जमीनें कर दी जातीं ? और वह शादी के बाद  वह जमीन का हिस्सा क्या अपने साथ  ले जा सकती थी?

मुझे अब यकीन हो चला है कि जितना साझा संसाधनों की सुरक्षा बढ़ेगी, महिलाओं की स्वतंत्रता को भी उतना ही बल मिलेगा। चाहे वो इंटरनेट हो, जंगल हो, नदियां हो, तालाब हों, सामुदायिक भवन या स्थान हों, चरागाहें हों- कोई से भी साझा संसाधन हों, जितनी उनकी सुरक्षा बढ़ेगी, महिलाएं उतनी ही आसानी से पितृसत्ता की बेड़ियों से मुक्त होंगी।


यह लेख आप अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं-

https://www.linkedin.com/pulse/women-commons-ishan-agrawal/


Comments

  1. हमारे समाज में कई तरह की असमानताएं हैं। स्त्री और पुरुष के बीच असमानता भी उन में से एक है। आम तौर पर पितृसत्ता का प्रयोग इसी असमानता को बनाए रखने के लिए होता है।

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