Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2021

89 का बचपन- पठान की आँखें

तस्वीर- ANI से मुरादाबाद के एक पीतलक के कारीगर की  बहुत खूबसूरत दिन था वो! आखिरी इम्तिहान का दिन! मैंने बड़ी मेहनत की थी। पूरे इम्तिहान के दौरान रात को 11 बजे सोता था, 5 बजे जागता था। पांचवी क्लास के बच्चे के लिए इतना बहुत था। सुबह सुबह उठ के सबक दोहराना, नहाना-धोना, भगवान के सामने माथा टेकना, और फिर स्कूल जाना। स्कूल बस  में भी किताब निकाल कर दोहराना बड़ा लगन का काम था।  इम्तिहान ख़त्म होने के बाद के बहुत से प्लान थे।  जैसे फटाफट, पास वाली दुकान से ढेर सारी कॉमिक्स किराए पर लानी थी। बुआ जी के घर जाकर बहनों के साथ खेलना था। वगैरह वगैरह। हसनपुर भी जाना था। मुरादाबाद में तो मैं अकेला था चाचा के पास। हालाँकि उस समय इम्तिहान की वजह से मम्मी पापा मुरादाबाद में ही थे। वहाँ के चामुंडा मंदिर और शिवालय की बहुत याद आती थी।  खैर! इम्तिहान देने के बाद स्कूल से ही छुट्टी का जलसा शुरू हो चुका था। सब बच्चों के चेहरों पर ऐसी ख़ुशी थी जैसे सब जेल से छूटे हों। आखिरी दिन पर फैज़ल, शहज़ाद, अमित और मैं अपने पेपर नहीं मिला रहे थे। बस, हम सब बहुत खुश थे। कूद रहे थे। एक दूसरे ...

नदी से रिवरफ्रंट तक

https://www.downtoearth.org.in/news/water/the-demise-of-rivers-59881 https://india.mongabay.com/2019/04/sabarmati-the-river-that-gandhi-once-chose-to-live-by-is-now-dry-and-polluted/ https://www.counterview.net/2020/05/gpcb-admits-industry-polluted-sabarmati.html https://www.indiatoday.in/india/story/ganga-river-water-unfit-for-drinking-bathing-1538183-2019-05-30 https://thewire.in/environment/sabarmati-pollution-effluent-sewage-report ऊपर दिए कुछ लिंक यदि आपने पढ़ लिए हों तो नीचे की कविता आने वाले भविष्य को दिखाने के लिए लिखी गयी है। और यदि नहीं पढ़े हों तो यह कविता पढ़ लें। कविता के बाद दो वीडियो भी है। एक साबरमती पर है, थोड़ा लम्बा है। एक ऋषिगंगा पर है, थोड़ा छोटा है। थोड़ा समय निकालकर ज़रूर देखें। खासतौर पर अगर १ लाख रूपए महीने से कम कमाते हों तो। क्यूंकि यदि उससे ज़्यादा कमाते होंगे, तो आपको मेरी बात शायद समझ में नहीं आएगी।  नदी और औरत  नदी हूँ मैं  कोई सती नहीं  जिसका श्रृंगार कर तुम जला दोगे  सती माता के जयकारे लगाओगे  और मैं इस महानता के सागर में ...

"ट्रेजेडी ऑफ़ कॉमन्स" के पीछे क्या छुपा है?

बीसवीं सदी में वैज्ञानिकता का मुलम्मा ओढ़े बहुत से ऐसे पुरातनपंथी विचारों ने जगह बनाई जिसने हमारी गैर-बराबरी वाली दुनिया को यथा-स्थिति बनाये रखने में खूब मदद दी। ऐसे विचारों का पूरी तरह मिट्टी में मिला देना जरूरी है जो आधुनिकता का मुलम्मा ओढ़े हैं पर असल में बहुत गहरे तक इंसानियत की सीमा बांधने वाले काले विचारों से प्रेरित हैं। बीसवीं सदी के अमेरिकी पारिस्थितिकी विशेषज्ञ, गैर्रेट हार्डिन की  "ट्रेजेडी ऑफ़ कॉमन्स" की परिकल्पना ऐसा ही एक विचार है।  ट्रेजेडी ऑफ़ कॉमन्स क्या है  हार्डिन का "द ट्रेजेडी ऑफ़ कॉमन्स" नाम का निबंध 1968 में शोध प्रबंधों को छापने वाली  विख्यात पत्रिका "साइंस" में छपा। इस निबंध ने अपने समय के बुद्धिजीवी जगत में तहलका मचा दिया था। शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिस पर हार्डिन के लेख का प्रभाव न पड़ा हो , चाहे वह अर्थशास्त्र हो या विज्ञान या पारिस्थितिकी या राजनीति शास्त्र।  "ट्रेजेडी ऑफ़ कॉमन्स " है क्या ? मध्यकालीन ब्रिटेन में हर गाँव के एक हिस्से को सबके उपयोग के लिए रखा जाता था। यह खेती की ज़मीन के बाहर का एक हिस्...