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दो पुरानी कविताएं


सत्य (2-5-2005 )


सत्य
न जाने कैसे
कब

इतना जटिल हो गया

कि व्यक्त करने को
कम पड़ गयीं भाषाएं

अंकित करने को
कम पड़ गए रंग

न जाने कैसे
कब

जुबान पर रखा
जलता कोयला हो गया सत्य।

सन 2050 (26-12-2003)

पिछले सौ-सवा सौ सालों में
हमने जो तरक्की की
उसके लिए आप जिम्मेदार हैं
पर इस तरक्की के साथ जीना
आप हमें नहीं सीखा पाए

इसलिए
हालाँकि आप इसके लायक तो नहीं
पर फिर भी
हम आप पर दया करते हैं


Comments

  1. जैसे इस वक्त मेरे देश में सुबह का समय है यह मेरे लिए सत्य है लेकिन ठीक उसी समय अमेरिका में रात है यह वहां का सत्य है, मनुष्य का सत्य जगह और परिस्थितयों में बदल जाता है,

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