"चहुँ ओर विकास की गंगा बह रही है।"
"भाई साहब!! क्या कह रहे हैं? यह तो गन्दी नाली है !"
"अरे एक-दो गाँव देखकर क्या होगा, बड़ी तस्वीर तो यह है कि चहुँ ओर विकास की गंगा बह रही है। "
"किसके विकास की ?"
"हमारे और आपके विकास की।"
"अच्छा!! कैसे !"
"हमारे लीडर के दिमाग में एक ब्लूप्रिंट है, जिसे हमें लागू करना है।"
"अच्छा! कहाँ !"
"गाँव में, शहर में, हर जगह "
"आपके लीडर को विकास का बेहतरीन अनुभव होगा ?"
"नहीं पर वह बहुत अच्छे विचारक हैं। उनके चीते से भी तेज़ दिमाग से गाँव की सच्चाई छुप नहीं सकती। "
"अच्छा!! पर कैसे?"
"अरे! इन्सेप्शन फिल्म देखे हो कभी? नेओलार्डो डा पकरिओ वाली? ठीक वैसे ही। हमारे लीडर उसी तरह सोचते हैं। उनके दिमाग में एक ब्लूप्रिंट है। उन्होंने अपने मन में एक खाका बनाया है। और खाके के अंदर खाका है। ये प्योर क्रिएशन है। शुद्ध देशी घी टाइप का। "
"कुछ समझ नहीं आया। थोड़ा ठीक से समझाइये।"
"पहले बताइये इन्सेप्शन फिल्म देखे हैं के नहीं। "
"थोड़ी देखी थी। समझ नहीं आयी। "
"वही तो। आप जैसे लोगों को ऐसी फिल्में समझ ही नहीं आती। खैर, मैं कोशिश करता हूँ समझाने की। देखिये इन्सेप्शन फिल्म में क्या है, एक आदमी लोगों के सपनों और दिमाग के अंदर घुसता है। उनको अपने सपने में लेकर जाता है और उनके मन में गहरे पैठे विचारों को सदा के लिए बदल देता है। इससे उनके मन में सच्चाई को देखने का नजरिया हमेशा के लिए बदल जाता है।वह पहले एक सपने में जाता है फिर उसी सपने के अंदर दूसरा सपना देखने लगता है।इस नए सपने की पूरी पृष्ठभूमि उसी ने रची है, बिलकुल एक कहानीकार की तरह। "
"हूँ। कुछ भी समझ नहीं आया।"
"अब मैं आपको दूसरे रास्ते समझाता हूँ। आपको धरातल पर क्या नज़र आता है ? गरीबी, भुखमरी, लाचारी, अपराध, अत्याचार, आदि। अब हम और आप इसका विश्लेषण करते हैं और इसके कारणों को समझने की कोशिश करते हैं।इस खुदाई में हम कहाँ पहुँचते हैं ?"
"यही कि इसकी वजह एक अन्याय पूर्ण व्यवस्था का होना है। जोकि कभी भी गरीब को पनपने का अवसर तो देती नहीं है बल्कि उसका खून और चूसती है। "
"हम्म। तो गरीब विद्रोह क्यों नहीं करता ?"
"एक तो उस के पास ताक़त नहीं है। और, दुसरे उसे ठीक ठीक पता भी नहीं है कि आखिर कौन उसका खून चूस रहा है। "
"वही तो। लेकिन गरीब को कुछ तो पता है? किसी चीज़ को तो कारण मानता होगा?"
"हाँ, कभी शिक्षा को दोष देता है, कभी दूसरे धर्मों के लोगों की आबादी को, कभी कभी अपने मालिक को। "
"क्या ये कारण सही हैं?"
"नहीं। कारण तो अन्यायपूर्ण व्यवस्था ही है। सर से पाँव तक। "
"अब बस। हमारा ये काम है कि उसके दिमाग में घुसकर ये बात बैठा दी जाए कि उसका विकास बड़े बड़े प्रोजेक्ट लाने से, दूसरे धर्मों के लोगों को नीचे दिखाने से और पैसा बहाने से हो जाएगा। यही है इन्सेप्शन। उसके मन में क्रांति की कुत्सित बात किसी तरह न आ जाए। "
"मतलब व्यवस्था से लड़ना आप उसे नहीं सिखाएंगे।"
"क्यों सिखाएंगे? हम ही तो व्यवस्था हैं। और हम अन्यायपूर्ण नहीं करुणापूर्ण हैं। जब वह दुखी होता है, भूखा होता है, तो हम लंगर में उसे खाना खिलाते हैं। कम्बल दे देते हैं। हमारे बड़े प्रोजेक्टों में वह रोज़गार पाता है। "
"लेकिन वो आपकी बातों में कैसे आएगा।"
"बातों में आने की बात नहीं है। उसे यकीन होगा। उसके मन में क्रांति के कुछ बीज हैं। हमें उन बीजों को बदल देना है विकास के विराट सपनों से, जिनसे चार धाम कॉरिडोर, नदी जोड़ो परियोजना की संकल्पना, बुलेट ट्रेन आदि पैदा होते हैं। इनकी मोहक आभा में क्रांति के बदबूदार बीज कहाँ टिकेंगे। अगर आपने वह फिल्म देखी हो तो उसमें वह व्यक्ति जिसके दिमाग में बदलाव लाया जा रहा है, उसे सपने में डर का आभास कराया जाता है। और उसके मन की गहराई में छुपे कई राज़ों को चतुराई से नेओलार्डो बदल देता है। डर बड़ी ताक़त है।"
"हम्म। पर अपना नुक्सान कर बैठेगा। "
"नहीं। उसके दिमाग के अंदर उसकी इस हालत के लिए दूसरे कारण भी तो हैं। हमें उन्ही कारणों को हवा देनी है। वह बिलकुल असली से मालूम पड़ते हैं। और साहब, ये बात तो मानेंगे, कि व्यवस्था के साथ यदि आप अपने आप को महसूस करते हैं, तो आपके अंदर एक अकड़ आ जाती है। यही अकड़ या स्वैग सबसे बड़ा विकास है। इस अकड़ पर दिमाग का पुर्जा पुर्जा न्योछावर है। "
"इस अकड़ वाली बात को थोड़ा समझाइये। "
"भाई, अगर आपको लगता है की मेरी जाति या मेरे धर्म की सरकार है, तो यार कुछ तो अकड़ आ ही जाती है। अब गरीब आदमी को कितने मौके मिलते हैं अकड़ने के ? हमारे विकास ने सबको अकड़ने का एक मौका दिया है। कुछ नहीं तो नारे लगाकर ही सही, उसे दूसरे गरीबों पर अकड़ दिखाने का मौका तो मिल ही गया है। इसके नशे में वह अपनी समस्याएं भी भूल जाएगा और बल्कि उसे बजबजाती नालियों में गंगा दिखाई देने लगेगी। वह हर उस आदमी को जो उसे बजबजाती नाली दिखा रहा है, चुप कराने की कोशिश करेगा। "
"जी समझ गया। पर दूसरे लोग भी कोशिश करेंगे उसका मन बदलने की। "
"हा हा हा। हाँ कुछ लोग हैं जो कोशिश करेंगे। वे देश को बिना विकास के जंगलों और खेतों का देश ही बने रहने देना चाहते हैं। उनका हम कुछ नहीं कर सकते। बल्कि थोड़े बहुत लोग ऐसे हों तो कोई बुराई नहीं है। इससे हमारे काम को आसानी होती है।"
"कैसे?"
"वह भी उस जमात का हिस्सा हो जाते हैं जिनसे गरीब डरते हैं। वह विकास के सपने के खिलाफ कुछ सुन नहीं सकता। "
"शुक्रिया महाराज। पर आपको यकीन है के इसमें आपका फायदा होगा ?
"भाईसाहब !! आप भूल गए, आप और मैं गरीब ही तो हैं। "
Excellent 👍
ReplyDeleteमुझे सम-सामायिक विकास की इंसेप्शन टाईप मन:इसथीती को पढ़ कर समझ में आया की हमारे देश में चल रही सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक , आज की स्थित हमारे देश के सत्ता धारी लोगों ने लोली पोप देना, (हमारे अच्छे दिन आयेंगे )कब आएगा पता नहीं ?इस समय में महगाई बेरोजगार आसमान छु रहा है |बात गावं का देखें तो आज प्री में चावल दाल बाटने की बात कर रही है सरकार ऐसा सामग्री दे रही है जिसे जानवर खाने वाली क्वालिटी है |लेकिन हम गरीब कोई आवाज नहीं उठाता |सरकार बोलती है की लोकडाउन में मदद किया | सरकार के पास बड़े -बड़े आंकड़े हर एक्टिविटी के सुनने को मिलता है , लेकिन धरातल में नाम मात्र की दिखाई देती है |
ReplyDeleteरामकुमार भाई की ओर से