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बढ़ती जीडीपी और सूखती नदियाँ


खबर हुयी है के देश का सकल घऱेलू  उत्पाद यानीकि जीडीपी जल्द ही 5 लाख करोड़ डॉलर पहुँच जायेगा। बड़ी ख़ुशी की बात है । इसका मतलब है हमारा देश लगभग 350 लाख करोड़ रूपए मूल्य का उत्पादन हर वर्ष करेगा। इतने शून्य लगेंगे इस संख्या में के कोई गिनते गिनते बेहोश हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। 

मुझे उम्मीद है के नोटों की इस बाढ़ में मेरा भी हिस्सा लगा होगा। कुछ पैसा मैंने भी शेयर बाजार में लगा रखा है, आजकल के किसी भी आम नौकरी पेशा आदमी की तरह। मुझे उम्मीद है के मुनाफा होगा। और मुझे ये भी उम्मीद है के मेरे प्रोविडेंट फण्ड की ब्याज दर भी न घटेगी। अब ये चमत्कार कैसे होगा इस फलसफे में न पड़ें तो अच्छा है। 

फिलहाल हमारी चिंता कुछ और है।  इस मुई जीडीपी के चक्कर में हमें लगता है के हमारी गंगा मैया हमसे रूठ गयीं हैं।क्या है कि पिछले सत्तर सालों में जितनी तेजी से जीडीपी बढ़ी, उतनी तेजी से गंगा मैया गायब हुयी। नर्मदा मैया तो और भी ज्यादा रुष्ट हैं। पिछले कुछ महीनों में खूब खबर छपी के  नर्मदा मैया अंतर्ध्यान हो गयी गर्मियों में। हमारे मन को चिंता हुयी के अगर जे ऐसे ही अंतर्ध्यान रहीं, तो अपने रपटा घाट वाले पंडत जी का क्या होगा जो रोज माँ रेवा की आरती करवाते हैं मंडला में ? 

जीडीपी की माया का बखान करना बड़ा कठिन है। मैया तेरी माया जाये न बरनी। इसी मायाजाल का असर है की उज्जैन से पहले क्षिप्रा दम तोड़ देती है पर उज्जैन शहर में देखो तो, अहा! क्या विहंगम दृश्य है । इसी तरह साबरमती भी अहमदाबाद से पहले सूख चुकी होती है पर कभी आप अहमदाबाद का साबरमती का किनारा देखिये। थेम्स को मात देता है। पानी उसमें भी नर्मदा का है पर उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है।  कबीर भी कह गए हैं, "माया महाठगिनी हम जानी" । इसका मायाजाल आसानी से न बूझेगा।

 अब मान लीजिये अपना मंडला शहर एक देश है। उसकी जीडीपी है १०० रुपये।  इस देश के सभी वासी नर्मदा जी का जल पीते हैं। मान लीजिये उन्हें यकीन हो जाए के ये जल सीधा नहीं पीया जा सकता। तो उन्हें फ़िल्टर खरीदना होगा। अब फ़िल्टर घर में नहीं है तो तीन तरीके हैं फ़िल्टर खरीदने के।या तो चोरी-बेईमानी करके पैसे कमाओ या पहले से और ज्यादा मेहनत करो और ज्यादा पैसे कमाओ। तीसरा तरीका है क़र्ज़ लो और फ़िल्टर खरीदो -वो क्या कहते हैं - सस्ती, आसान किश्तों में। जब हम इस तरह फ़िल्टर खरीदेंगे तो हमारी जीडीपी 100 रुपये से बढ़ कर 120 रुपये हो सकती है। इसकी कीमत हमने क्या दी ? हमने अपना ईमान बेचा तो किसी को दुःख दिया होगा। यदि ज्यादा काम किया तो सेहत पर असर हो सकता है या पत्नी-बच्चों को समय कम दिया होगा। या फिर कुछ दिन आधी रोटी खा कर क़र्ज़ पटाया होगा।

  फिर जैसे ही फ़िल्टर खरीदेंगे, जीडीपी बढ़ जाएगी और फ़िल्टर की दूकान वाले लाला जी और अमीर हो जायेंगे। यही नहीं, अगर फ़िल्टर बिजली से चले तो हमारा बिल बढ़ जायेगा और जीडीपी और बढ़ जायेगी। इस प्रक्रिया में फ़िल्टर के कुछ पार्ट हमें हर साल बदलने होंगे। ये पार्ट यदि ध्यान से  ठिकाने न लगाएं जाएँ तो ज़हरीले हो सकते हैं और बीमारी भी फैला सकते हैं। पर जब जबल ही पुर में कूड़ा ठिकाने लगाने की व्यवस्था नहीं है तो मंडला में क्या ख़ाक होगी ? पर यदि बीमारी फैले और फले फूले तो बहुत लोगों को दवाइयाँ खरीदनी होंगी, डाक्टर को फीस देनी होगी और देने के लिए बहुत सा काम करना पड़ेगा जिससे जीडीपी और बढ़ेगी। माने कुछ भी गड़बड़ होगा तो जीडीपी बढ़ेगी। 

अब आप सोच रहे होंगे की नदी पुराण में ये फ़िल्टर प्रकरण कहाँ से आ गया। यदि हम लोग फ़िल्टर न लगाएं और पानी खरीदें तो? या फिर सभी लोग अपने अपने घर में बोरिंग लगवा लें और फ़िल्टर  भी खरीद लें ? फिर तो जीडीपी बेलगाम घोड़े सी दौड़ पड़ेगी। क्या आईडिया है, हम यही तो चाहते हैं। 12 महीनों में से यदि ४ महीने बारिश के हटा दें तो मंडला शहर के लोगों को नर्मदा से पीने योग्य पानी मिल सकता है।  बारिश के दिन नगर पालिका के एक फ़िल्टर से सप्लाई का काम चल सकता है। पर हमारे यहाँ नदी की पूजा तो की जाती है, पर साधना जीडीपी मैया की चल रही है। मंडला में छोटे बड़े हज़ारों सबमर्सिबल और पंप नर्मदा जी के पानी को खींच रहे हैं। और नर्मदा मैया का पानी टैंकरों में और मिल्टन के बड़े डिब्बों में घर घर जा रहा है। या यूँ कहिये कि बिक रहा है। इस तरह हम नदी को बेचकर जीडीपी बढ़ा रहे हैं।

 अब सोचिये, छोटे से शहर मंडला में नर्मदा को लील रही है जीडीपी। ये 350 लाख करोड़ रूपए के लक्ष्य तक पहुँचते पहुँचते तो न जाने क्या हो चुका होगा। शायद कोई नदी बचेगी ही नहीं। सब जीडीपी की बलि चढ़ जाएँगी। उसके बाद हम लोग शायद नोट खाने लगेंगे और उसे निचोड़ कर पीने की कला भी खोज लेंगे। 




Comments

  1. Bahut hee sundar abhivyakti...kripya likhate rahen

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  2. दम तो है!
    लेकिन दो साल में दो पोस्ट... कैसे चलेगा?

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    1. सहज पके सो मीठा होय

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  3. Who is the author of this blog

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  4. अच्छा लगा पढ़के। समझने को मिला सरल शब्दों में गंभीर मसले को।

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  5. बहुत अच्छा लेख है, गुस्सा और व्यंग का सुन्दर मिश्रण

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  6. अच्छा हॆ,
    पानी भले नीचे जाये जीडीपी तो ऊपर जा रही हॆ।

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    1. जीडीपी मैया की जय

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    2. मुझे भी बहुत अच्छा लगा पढके
      बहुत ही अच्छा लेख है

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  7. Tum kar lo koshish, dhalaan pe dhakka lag Chuka hai. Santulan toh kharaab hi hai, maansik bhi aur aarthik bhi. Jai Borchi Baba ki. Likha tune achcha hi hai, humesha ki tarah.

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    1. लिखना भी है और करना भी है , चंद आसान तरीके बता सकता हूँ। फ़ोन करना कभी।

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  8. नदी संरक्षण की बात सही है और संरक्षण होना भी चाहिए, परन्तु इस प्रकार हर विषय GDP से जोड़ कर देखा जा सकता है।

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  9. बेहतरीन ! तुमने बेहद सरल भाषा और तरीके से बात कह दी। मुझे इस तरह के कुछ लेख 'सप्रेस' के लिए भेज सकते हो ?!

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  10. Well written, Ishan. Will use this example in one of our Schools for River workshops sometime.

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  11. thanks..Can you please reveal your identity? I am unable to guess from your blog title..

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  12. बड़े ही आसान भाषा में नदी और GDP ka connection

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