Skip to main content

गुएर्निका


(2003 में लिखी कविता, स्पेन की लड़ाई  के बारे में  NCERT  की किताब में पढ़ने के बाद और पिकासो की गुएर्निका देखने के बाद )

डर जा
भाग जा
मर जा

नीचे देख
कम देख
मत देख

मिमिया खिसिया रिरिया

 रो मत
 हँस मत

मोनालिसा की मुस्कान देखी है ?

खबरदार!
उससे ज़्यादा मत मुस्कुराना।


यह भी पढ़ें, आज की झलक मिल सकती है..

http://mentalfloss.com/article/63103/15-fascinating-facts-about-picassos-guernica

Comments

  1. बिल्कुल सही अनुभव और सही विचार रखा गया है

    ReplyDelete
  2. बहोत अच्छी कविता लिखी गई है। सब कुछ कर ले मगर अपनी विजय से जादा खुश मत हो।

    ReplyDelete
  3. बहोत अच्छी कविता लिखी गई है। सब कुछ कर ले मगर अपनी विजय से जादा खुश मत हो।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

गायब होते जुगनू

फोटो इंडियन एक्सप्रेस से  आखिरी बार अपने जुगनू कब देखा था ?  अब ये न कहियेगा कि परवीन शाकिर की ग़ज़ल में देखा था।  "जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें  बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए " बचपन में हमारे घरों में घुस जाते थे जुगनू। रात को बत्ती जाते ही दिखने शुरू हो जाते थे। दिप दिप उनकी रौशनी में कब वो वक़्त कट जाता था, पता  ही नहीं चलता था। मेरी उम्र के लोगों ने तो ज़रूर अपने बचपन में जुगनू देखे होंगे।  सैकड़ों, हज़ारों एक ही पेड़ पर। तब ज़िन्दगी में जुगनुओं की बड़ी जगह थी। बत्ती तो आती जाती रहती थी। पर जुगनू चमकते रहते थे। फिर कुछ लोग उन्हें देख कर कविता कहानी  लिखते थे और कुछ  बस उन्हें देखते थे। घंटों। फिर जैसे ही बत्ती आयी तो सारे बच्चे चिल्लाते थे "लाइट आ गयी... और सब घर के अंदर। कभी कभी कोई जुगनू घर के अंदर भी आ जाता था। वो उन कुछ कीड़ों में से थे  जिनसे बच्चे डरते नहीं थे। बल्कि खेलते थे।  मुझे नहीं लगता के मेरे बच्चे सहज भाव से जुगनू को कभी छू पाएंगे। उनकी उम्र के सभी बच्चे शायद जुगनुओं के झुण्ड को देखकर डर जाएं क्यूं...

उत्तर विकासवाद क्या है - कड़ी-1

मंडला में देशी मक्के की किस्में-कुछ दिनों में शायद बीते कल की बात बन जाएँ  कुछ समय पहले मेरे एक  दोस्त ने जोकि मेरी तरह एक गैर सरकारी संस्था में ग्रामीण विकास के लिए कार्य करता है, एक दिलचस्प किस्सा सुनाया।  उसने बताया के वह एक अजीब अनुभव से गुज़र रहा है। मेरा दोस्त बहुत समय से मंडला के एक गाँव में किसी परिवार के साथ मचान खेती पर काम कर रहा था। मचान खेती सघन खेती का एक मॉडल है जिसमें एक समय में एक जमीन के टुकड़े से कई फसलें ली जाती हैं, कुछ जमीन पर और कुछ जमीन से उठ कर मचान पर, बेलें चढ़ाकर । जिस परिवार को उसने प्रेरित किया, उसने पहले साल ज़बरदस्त मेहनत की और बड़ा मुनाफा कमाया। दूसरे साल भी परिवार के साथ वो काम करता रहा। और नतीजा फिर बढ़िया निकला।  तीसरे साल उसने सोचा के परिवार अब तो खुद ही मचान खेती कर लेगा। बरसात के आखिरी दिनों में मेरा दोस्त उस परिवार से मिलने गया। वहां जो उसने देखा, उससे वो भौंचक्का रह गया। उसने देखा की मचान खेती नदारद थी। उसकी जगह पारम्परिक खेती ले चुकी थी।  उसने घर के महिला से पूछा-  "काय दीदी, इस ब...

जामुन का पेड़

तस्वीर विकिपीडिया से साभार  thewire.in के हवाले से खबर आयी की सरकार ने कृष्णचंदर की 1960 में लिखी कहानी "जामुन का पेड़" को ICSE के दसवीं के पाठ्यक्रम से निकाल दिया है। चूँकि चंद नवीसांदो (अफसरों) को लगा की कहानी आजके निज़ाम पर भी एक व्यंग्य है। तो ज़ाहिर है, कहानी बहुत जरूरी है, और उसे बांटना सुनना और ज़रूरी है। खबर सच्ची है के नहीं, हमें एक-दो दिन में मालूम हो जायेगा। मैंने हिंदी में उनकी कहानी यहाँ नीचे दे दी है।कहानी पहले से ही thebetterindia.com पर मौजूद है। उसी से कॉपी की कहानी ही नीचे है। चाहे thebetterindia.com पर जाकर भी नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते हैं। https://hindi.thebetterindia.com/9063/hindi-krishna-chander-jamun-ka-ped-story/  और यूट्यूब लिंक  भी शेयर किया है आप सबके लिए। कोई मयंक वैष्णव साहब हैं। अच्छा बोलते हैं। https://www.youtube.com/watch?v=CjQ9bLS-49E कृष्ण चन्दर जी का परिचय  कृ ष्ण चंदर हिन्दी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1961 में पद्‌म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होने म...