द फिनांशियल एक्सप्रेस से साभार |
कुछ निराश लोग ऑटो सेक्टर में आयी जबरदस्त मंदी से बेहद आहत हैं। उन्हें लगता है कि ये मंदी अर्थव्यवस्था में मंदी की तस्दीक करती है। पर पता नहीं क्यों, मेरा मन कहता है कि क्या फर्क पड़ता है।
कारें कौन खरीदता है ? अभी भी मुल्क में एक बड़ी आबादी के पास साइकिल तक नहीं है। आबादी का अधिकतर हिस्सा बस या रेल के जनरल डिब्बे से ही सफर करता है। ये लोग तो शायद ही कभी सफर कर पाएं, गाडी में। कई बार मैंने इन लोगों को भेड़-बकरी की तरह गाँव की शेयर्ड जीप में लदे देखा है। ये लोग कभी क्या गाडी खरीदेंगे। गाडी न खरीद पाना नव-धनाढ्य वर्ग या नए पैसे वालों की समस्या है। ऐसे लोग जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने लगेंगे तो सरकार अपने-आप बसें खरीदेगी। इनमें से बहुतों को तो अब बस में सफर करने की आदत ही नहीं बची है। क्या पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाने की योजना सरकार को नहीं बनानी चाहिए? एक के बाद एक राज्य सरकारें अपने बस परिवहन विभागों का निजीकरण करती आ रही हैं। कमर टूट गयी है सरकारी परिवहन के ढाँचे की। राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या पर कोई ध्यान क्यों नहीं देता। क्यों इस बात की कोशिश नहीं होती के ज्यादातर लोग गाड़ी छोड़कर बस से यात्रा करें। चाहें जलवायु परिवर्तन की समस्या हो या दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण की, कारें उसकी सीधे जिम्मेदार हैं। ऐसे में हम क्या वाकई सिर्फ नौकरियों के लिए उनके उत्पादन को लगातार बढ़ाये रखना चाहते हैं।
कहा जा रहा है के ऑटो सेक्टर में करीब 2.5 लाख लोगों की नौकरियां जाने का अनुमान है जिसमें बड़ी संख्या में नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र में जाएंगी, जैसे ट्रक ड्राइवर, सेल्समेन, मैकेनिक इत्यादि। क्या बस ड्राइवर की नौकरी बढ़ाने से इनकी समस्या कम नहीं की जा सकती ? GST कॉउन्सिल में ऑटो सेक्टर पर टैक्स घटाने के बारे में बात करने की क्या जरूरत है? गौरतलब है कि कारें आखिरकार एक विलासिता की वस्तु ही तो है। क्या सरकार इस समस्या को एक अवसर में नहीं बदल सकती जिससे मध्यम वर्ग फिर से पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करने की और अग्रसर हो?
इतने सालों से कृषि क्षेत्र में मंदी थी। वो तो किसी को दिखी नहीं। हर साल करोड़ों का टैक्स सरकार उद्योगों का माफ़ कर देती है , उस से तो किसी की नौकरी नहीं गयी। आज जिन शोरूम के बंद होने की बात की जा रही है, अधिकतर कहाँ होते हैं ये शोरूम? कम से कम छोटे शहरों में ऐसे शोरूम खेती की जमीन को व्यावसायिक जमीन में बदल कर बनाये जाते हैं। और कौन होते हैं इनके मालिक? इनके धंधे के लिए, एक लग्ज़री उत्पाद के लिए लोन की दर क्यों कम की जाय? मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि आपको साइकिल खरीदने के लिए कोई लोन नहीं मिलेगा। स्कूटर खरीदेंगे तो करीब 18% पर लोन उपलब्ध है, और गाडी पर है 13% और BMW पर जानते हैं कितना है? 6% मात्र। माइक्रो फाइनैंस कंपनियां तो 24 % तक लेती हैं ब्याज पर। यानी गरीब के ऊपर ज्यादा भार है ब्याज का बनिस्बत अमीर आदमी के ऊपर। और इन अमीर लोगों को लोन देने के लिए बैंक डिपॉज़िट किस से इकठ्ठा करेगा ? हम से, आप से। और हमें अपनी बचत पर कम ब्याज देगा ताकि अमीर लोग लोन ले सकें।
हर साल कार दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या का आपको अंदाजा है? करीब 1.5 लाख मौतें हर साल देश की सड़कों पर होती हैं। उसमें से 23.6% कारों सेऔर 33. 6% दुपहिया वाहनों से (देखें : https://india.uitp.org/articles/road-accidents-in-india)। बसों का आंकड़ा है 7. 8 % । तो क्यों न बसों को अपनाया जाय और कारों पर इतना ध्यान हटाया जाय। अच्छी आरामदायक बसें हों , कोई हर्ज नहीं। एक बस के पीछे कम से कम 10 गाड़ियों की जरूरत कम होती। कितना तेल बचता, कितना डॉलर, इसका अंदाज़ा सुधी जन लगा सकते हैं।
मेरा मानना है कि अर्थव्यवस्था की मंदी का दौर कोई आज का नहीं है। जब तक कोई व्यवस्था अमीर गरीब की खाई को और चौड़ा किये जा रही हो, तो वह भला ठीक कैसे मानी जा सकती है। सिर्फ जीडीपी माता के आशीर्वाद से? अमीरों के और अमीर होने से आजतक अगर किसी देश का भला हुआ हो तो बताइये। यदि सही में हमें मंदी की चिंता है तो हमें कृषि क्षेत्र की हालत पर काम करना होगा। अभी भी देश के 75 % वाहन दो पहिया हैं जोकि अधिकतर ग्रामीण भारत के परिवहन के साथी हैं। किसान की हालत सुधरेगी तो इनकी मांग भी बढ़ेगी।
मुझे यह लेख ई-मेल की मार्फत मिल सकता है ?!
ReplyDeletebilkul
Deletewell said.. indeed, focus on agriculture is important, we are still a predominantly agrarian nation - in population terms, if not GDP terms.. the western model has been to outsource agriculture to poorer countries and make money out of big industry.. for ex: Germany has less than 1% of its population in agriculture and the mainstay of its economy is automobile and other hi-tech industries.. at that stage, agriculture also becomes a big business with high mechanization, large farms etc.. india has been moving in that direction.. but, is this the right model for India - with its resources and capabilities .. bridging the inequality gap seems as important as increasing the gdp..
ReplyDeletethanks a lot partha for voicing your views..nice comparison with western models
Deleteappreciate the effort to highlight the misplaced priorities, another dimentions can be ecological outcome..thanks and keep it up
ReplyDeletethanks
Deleteappreciate the effort, .priorities should be Agriculture and rural development which is back bone of Indian economy rather than auto mobile sector.
ReplyDeleteNicely penned down. I agree with public transport option and government should prioritize it. In Singapore there is excellent public transport system and the government has made stringent rules for purchase of private vehicles so people are bound to use the public transport.
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