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Rashtra Ka Naya Bodh | Harishankar Parsai | Hindi Satire



जबलपुर से 90 किलोमीटर दूर मंडला में रहते हुए परसाई जी को उनके जन्मदिन पर श्रद्धांजलि देने का ख्याल आया। सुनिए, 1968 में लिखा उनका व्यंग्य - "राष्ट्र का नया बोध" .. लेखकों की यही ख़ास बात है। सालों बाद भी उनकी बात उतनी ही सारगर्भित और विचार के लायक है जैसी उस वक़्त थी। और हमारा राष्ट्रबोध भी उतना ही खोखला है जितना पहले था। ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं। कृपा करके सुनियेगा जरूर।

Comments

  1. सटीक और समसामयिक। इस लेख को लोंगो तक पहुचने के लिए बहुत आभार।

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  2. बहुत अच्छा व्यंग है आपने तो पूरी व्यवस्था को ही नग्गा कर दिया है |

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  3. इस लेख को लोंगो तक पहुचने के लिए बहुत आभार।

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  4. Replies
    1. Aapko shukriya..humein Harishankar parsai ji tak pahunchane ke liye

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