तस्वीर इकनोमिक टाइम्स से साभार वीरेन डंगवाल जी आपके अश्वारोही चल दिए हैं। Covid-19 के कारण उपजे हालातों में दिल्ली के आनंदविहार बस अड्डे पर घर जाने को बेचैन इन अश्वारोहियों की भीड़ बिलख रही थी।पिछली दो सदियों में विकास के जिस मॉडल ने करोड़ों लोगों को शहरों की ओर धकेला, एक पल को ऐसा लगता है कि उस मॉडल की एक्सपायरी डेट नज़दीक आ गयी है। वीरेन डंगवाल जी, आपके अश्वारोही अपने पड़ाव से घर की ओर निकल चुके हैं। लोग वापस गाँव की ओर चल दिए हैं -और वो भी पैदल। पहले से कहीं ज्यादा बेहाल, कमज़ोर और थके हुए लोग। बहुत से पुलिस की ज़्यादती के भी शिकार हो रहे हैं। और बहुत कम जगह पुलिस ने इनका साथ भी दिया है। क्या इसी दिन के लिए ये करोड़ों लोग अपने अपने गाँव छोड़कर शहर आये थे? लोगों के पास हज़ारों सवाल हैं और जवाब एक भी नहीं। स्किल इंडिया की एक ही झटके में हवा निकल गयी और उन दावों की भी जिनके हिसाब से इन शहरों की तरक्की में गाँव के आदमी को उसकी आकांक्षाएं (aspirations) पूरी करने की जगह मिलनी थी...
सम-सामायिक विषयों, पोस्ट डेवलपमेंट (उत्तर विकासवाद) और विकास के वैकल्पिक मार्गों की बात; जंगल के दावेदारों की कहानियां, कुछ कविताएं और कुछ अन्य कहानियाँ, व्यंग्य