तस्वीर- ANI से मुरादाबाद के एक पीतलक के कारीगर की बहुत खूबसूरत दिन था वो! आखिरी इम्तिहान का दिन! मैंने बड़ी मेहनत की थी। पूरे इम्तिहान के दौरान रात को 11 बजे सोता था, 5 बजे जागता था। पांचवी क्लास के बच्चे के लिए इतना बहुत था। सुबह सुबह उठ के सबक दोहराना, नहाना-धोना, भगवान के सामने माथा टेकना, और फिर स्कूल जाना। स्कूल बस में भी किताब निकाल कर दोहराना बड़ा लगन का काम था। इम्तिहान ख़त्म होने के बाद के बहुत से प्लान थे। जैसे फटाफट, पास वाली दुकान से ढेर सारी कॉमिक्स किराए पर लानी थी। बुआ जी के घर जाकर बहनों के साथ खेलना था। वगैरह वगैरह। हसनपुर भी जाना था। मुरादाबाद में तो मैं अकेला था चाचा के पास। हालाँकि उस समय इम्तिहान की वजह से मम्मी पापा मुरादाबाद में ही थे। वहाँ के चामुंडा मंदिर और शिवालय की बहुत याद आती थी। खैर! इम्तिहान देने के बाद स्कूल से ही छुट्टी का जलसा शुरू हो चुका था। सब बच्चों के चेहरों पर ऐसी ख़ुशी थी जैसे सब जेल से छूटे हों। आखिरी दिन पर फैज़ल, शहज़ाद, अमित और मैं अपने पेपर नहीं मिला रहे थे। बस, हम सब बहुत खुश थे। कूद रहे थे। एक दूसरे ...
सम-सामायिक विषयों, पोस्ट डेवलपमेंट (उत्तर विकासवाद) और विकास के वैकल्पिक मार्गों की बात; जंगल के दावेदारों की कहानियां, कुछ कविताएं और कुछ अन्य कहानियाँ, व्यंग्य